रामायण प्रसंग में धनुष भंग चौपाई के माध्यम से रामायण के चिर परिचित प्रसंग पर चर्चा करूंगा, साथ ही एक नए दृष्टिकोण से अपनी बात रखूँगा । आखिर क्यों परशुराम भगवान अचानक धनुषभंग के बाद जनकपुर के महाराजा जनक की यज्ञशाला में पहुंचे थे ।
राम राम मित्रो ! मैं पंडित योगेश वत्स अपने धर्म,अध्यात्म और ज्योतिष के ब्लॉग पर बहुत बहुत स्वागत करता हूँ ।
मुख्य प्रसंग पर आने से पहले मैं कुछ रामायण और राम कथा पर चर्चा करना चाहूँगा ।
सबसे पहली बात जो कहना चाहूँगा कि आप रामकथा के प्रसंग को पढ़ पेज पर आए यह बात ही अपने आप में प्रमाणित करती है कि आप के ऊपर भगवान राम की कृपा है । मैंने अपने नवधा भक्ति रामायण चौपाई वाले लेख में कहा था कि जो भी भगवान की कथा प्रसंगों में रुचि रखता है वह भी नौ भक्तियों में से एक भक्ति कर रहा है, यह भक्ति का प्रकार खुद भगवान श्री राम ने अपनी परम प्रिय भक्त शबरी को बताया था ।
नवधा भक्ति रामायण चौपाई :
प्रथम भगति संतन कर संगा । दूसरि रति मम कथा प्रसंगा
इसलिए जो लोग भी भगवान की कथा में रुचि लेते हैं, उनकी कथाओं को सुनते हैं,पढ़ते हैं गाते हैं उन पर भगवान श्री राम की विशेष कृपा होती है,बिना उन की कृपा के पत्ता भी नहीं हिलता है अगर उनकी कृपा ना होती तो ना तो मैं यह कथा लिख रहा होता ना आप पढ़ रहे होते यह सब उनकी करुणामयी कृपा ही है ।
रामायण का हर प्रसंग कुछ ना कुछ कहता है, जब आप मानस पढ़ रहे होते हैं तो वह आपको निर्मल करती है,पावन करती है और खुद ही आपको अपने प्रकाश से प्रकाशित करती है आपका अन्तःकरण जाग्रत होता है और ऐसे ही जाग्रत अवस्था में आपको रामायण प्रसंगों के अलग अलग आयाम देखने को मिलते हैं ।
अब मैं अपने कथा प्रसंग पर चलता हूँ ।
रामायण छंद अर्थ सहित :
भगवान राम के धनुष तोड़ते ही जो तीनों लोकों की और प्रकृति की जो दशा होती है उसका दर्शन रामायण के इस छंद में होता है ।
भरे भुवन घोर कठोर रव रबि बाजि तजि मारगु चले।
चिक्करहिं दिग्गज डोल महि अहि कोल कूरुम कलमले।।
सुर असुर मुनि कर कान दीन्हें सकल बिकल बिचारहीं।
कोदंड खंडेउ राम तुलसी जयति बचन उचारही।।
छंद का अर्थ :
घोर कठोर शब्द से सभी लोक भर गए । सूर्य के घोड़े मार्ग छोड़कर चलने लगे । दिग्गज चिंघाड़ने लगे,धरती डोलने लगी शेषनाग,वाराह और कछुए कलमलाने लगे । देवता,राक्षस,मुनि, सब ध्यान से आवाज को सुनकर व्याकुल होकर विचार करने लगे । तुलसीदास जी कहते हैं जब सभी को विश्वास हो गया कि भगवान राम ने धनुष को तोड़ दिया है तो वह उनकी जय जयकार करने लगे ।
प्रकृति में जब यह सब परिवर्तन हुए तो भगवान परशुराम की तपस्या टूट जाती है और ध्यान लगाने पर परशुराम जी को ज्ञात हो जाता है कि उनका परम प्रिय धनुष जो उन्हे शंकर जी ने दिया था ,उसका खंडन हो चुका है जो वह जनक जी को दे कर आए थे । यह जान कर वह बहुत क्रोधित होते हैं और अपना फरसा उठा कर जनकपुर को प्रस्थान करते हैं ।
यह कथा तो सभी को मालूम है लेकिन मैं आज एक दूसरा दृष्टिकोण भी दे रहा हूँ ….
परशुराम जी का जनकपुर आने का एक और कारण :
जब भगवान राम धनुष को तोड़ देते हैं तो चारों तरफ जनकपुर में खुशियाँ छा जाती हैं
रामायण धनुष भंग चौपाई :
रही भुवन भरि जय जय बानी। धनुषभंग धुनि जात न जानी।।
मुदित कहहिं जहँ तहँ नर नारी। भंजेउ राम संभुधनु भारी।
सुर,मुनि,नर नारी सब खुशी मनाते हुए भगवान श्री राम की जय जयकार करने लगते हैं ।
लेकिन सोचिए एक से एक दिग्गज राजा तीनों लोक से एकत्रित हुए थे इस धनुष यज्ञ में और वो धनुष को तोड़ना तो दूर तिल भर हिला भी नहीं सके थे, रावण और वाणासुर जैसे तीनों लोकों के महाबली भी आए थे लेकिन वो जानते थे यह शिव जी का धनुष है और इसको तोड़ना तो दूर चढ़ाना भी मुश्किल है इसलिए वो बिना धनुष को हाथ लगाए ही वापस चले गए थे ।
जो राजा सभा में उपस्थित थे वो अपने आप को बहुत अपमानित महसूस कर रहे थे कि जिस धनुष को वो हिला भी नहीं सके वह धनुष उनके सामने ही एक अबोध से बालक ने तोड़ दिया । यह बात उनको ग्लानि से भरे दे रही थी और अब वो खिशिया कर उपद्रव करने लगे ।
बालकांड रामायण चौपाई अर्थ सहित : धनुष भंग चौपाई
उठि उठि पहिरि सनाह अभागे। जहँ तहँ गाल बजावन लागे।।
लेहु छड़ाइ सीय कह कोऊ। धरि बाँधहु नृप बालक दोऊ।।
तोरें धनुषु चाड़ नहिं सरई। जीवत हमहि कुअँरि को बरई।।
जौं बिदेहु कछु करै सहाई। जीतहु समर सहित दोउ भाई।।
चौपाई अर्थ :
वो अभागे राजा कवच पहन पहन कर जहां तहां गाल बजाने लगे । कोई कहता है सीता को छीन लो और दोनों राजकुमारों को पकड़कर बांध लो । धनुष तोड़ने भर से इनकी अभिलाषा इनकी चाह पूरी नहीं होगी । हमारे होते हुए राजकुमारी को कौन ब्याह सकता है । यदि जनक कुछ सहायता करें तो युद्ध में इन्हे भी राजकुमारों सहित जीत लो ।
अब सोचिए जहां खुशियाँ मनाई जा रहीं हों चारों तरफ जय जयकार हो रही हो आकाश से देवता फूलों की वर्षा कर रहे हों एसे में कुछ राजाओं द्वारा रंग में भंग डाला जा रहा हो युद्ध की धमकी दी जा रही हो उस समय उस महा आयोजन के दृश्य की कल्पना करिए ।
तुलसी दास जी अपनी रामचरितमानस चौपाई में आगे लिखते हैं कि यह उपद्रव देख और सुनकर सीता जी डर गईं और उनकी सखियाँ उनको वहाँ से उनकी माता जी के पास ले गईं ।
कोलाहलु सुनि सीय सकानी। सखीं लवाइ गईं जहँ रानी।।
कल्पना करिए आज के दौर में भी किसी शादी में अगर ऐसा उपद्रव होने लगे तो क्या होगा या तो पुलिस बुलाई जाये या किसी ऐसे इंसान को बुलाया जाये जिस से सब डरते हों हालांकि उस सभा में भी जो साधु सज्जन थे उन्होने राजाओं को समझाने का बहुत प्रयास किया लेकिन वो उपद्रवी राजा समझने को तैयार नहीं थे । भगवान राम चाहते तो वो उन राजाओं को सबक सिखा सकते थे लेकिन वो खुद दूल्हे राजा थे वर थे तो वह शांत रहे उन्होने लक्षमण जी को भी शांत रखा ।
उन्होने दूसरा उपाय चुना और अपने दूसरे अवतार को यह जिम्मा सौंप दिया । भगवान परशुराम स्वयम विष्णु के छठे अवतार हैं और भगवान की लीला ही तो है ठीक इस उपद्रव के समय भगवान परशुराम का सभा में आगमन होता है और उनको देखते ही राजाओं की क्या दशा होती है आगे की चौपाई में देखिये ।
रामचरितमानस चौपाई : धनुष भंग चौपाई
तेहिं अवसर सुनि सिव धनु भंगा। आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।।
देखि महीप सकल सकुचाने। बाज झपट जनु लवा लुकाने।
उसी समय शिव जी के धनुष का टूटना सुनकर भ्रगुकुल रूपी परशुराम का आगमन होता है । उन्हें देख सभी राजा सकुचा गए और ऐसे छिपने लगे जैसे बाज को देख बटेर ( एक चिड़िया) छिप जाती है ।
परशुराम जी का सभा में आने का निश्चित रूप से एक कारण यह भी था । भगवान राम और माता सीता के ब्याह में जो बाधा बन रहे थे वहाँ उपद्रव कर रहे थे उनको शांत करवाना ।
मन में सवाल उठ सकता है कि अगर परशुराम ध्यान लगा कर यह जान सकते थे कि जनकपुर में रखा शिव का धनुष टूटा है तो क्या वह यह नहीं जान सकते थे कि वह धनुष किसने तोड़ा है फिर वो क्यों बोले …..
रामायण चौपाई : अति रिस बोले बचन कठोरा। कहु जड़ जनक धनुष कै तोरा।।
वो बिलकुल जान सकते थे और जानते भी होंगे कि धनुष किसने तोड़ा लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए भगवान जब मनुष्य के रूप में अवतार लेते हैं तो मनुष्य की ही मर्यादा में रहते हैं उनके सारे आचार विचार और व्यवहार मनुष्य की तरह ही होते हैं तो यहाँ चाहे भगवान श्री राम हों या फिर भगवान परशुराम दोनों ही मनुष्य की तरह ही व्यवहार कर रहे थे या कथा की भाषा में कहें तो हम कह सकते हैं भगवान लीला कर रहे थे ।
भगवान की लीलाओं को सुनते पढ़ते समय सारी चतुराई और तर्क शक्ति एक किनारे रख सिर्फ भाव और भक्ति अपने साथ रखनी चाहिए ।
कथा का नैतिक संदेश : Moral Message Of The Story
इस कथा से एक बात तो सीधे सीधे समझ आती है कि क्रोध किसी के भी विवेक का नाश कर सकता है फिर वो चाहे देवता हो या मनुष्य । भगवान परशुराम स्वयं विष्णु के अवतार हैं लेकिन जब वो क्रोध में जनक जी की सभा में जाते हैं तो वह भगवान श्री राम तक को नहीं पहचान पाते । ऐसे ही सभा में उपस्थित अन्य राजा माँ सीता के लोभ में जो स्वयं लक्ष्मी जी का अवतार हैं स्वयं माया हैं उनके वशीभूत होने की वजह से भगवान को नहीं पहचान पाते हैं । काम,क्रोध,लोभ,मोह, यह मनुष्य के बुद्धि विवेक को हर लेते हैं । यही ईश्वर प्राप्ति की सबसे बड़ी बाधाएँ हैं ।
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F.A.Q
भगवान परशुराम के पिता का नाम क्या था ?
भगवान परशुराम महा ऋषि जमदग्नि के पुत्र हैं
भगवान परशुराम की माता का क्या नाम था ?
परशुराम की माता जी का नाम रेणुका था
भगवान परशुराम किस जाति के थे ?
भगवान परशुराम ब्राह्मण जाति में पैदा हुए थे
भगवान परशुराम की म्रत्यु कैसे हुई ?
भगवान परशुराम अमर हैं उनकी कभी म्रत्यु नहीं हुई है
परशुराम किसके अवतार हैं ?
परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं