प्रारब्ध : आपके पूर्व जन्मों की F. D.

प्रारब्ध

आपको वर्तमान में जो कुछ भी भोगने को मिल रहा है,वह आपके प्रारब्ध के अनुसार मिल रहा है । हो सकता है वो बहुत अच्छा हो, हो सकता है वो बहुत बुरा हो ।

आखिर क्यों एक इंसान गरीब के घर पैदा होता है और जीवन भर के संघर्ष के बाद अपनी गरीबी में ही मर जाता है ?

वहीं दूसरा इंसान पैदा ही किसी अमीर के यहाँ होता है जिसे हम कहते हैं कि वह चाँदी की चम्मच मुंह में ले कर पैदा हुआ है । ऐसे लोगों को रोजी रोटी के लिए या जीवन यापन के लिए रोज रोज के संघर्ष नहीं करने पड़ते उनके संघर्ष कुछ अलग उद्देश्य के लिए होते हैं ।

इस लेख में आज इन्ही कुछ बिन्दुओं पर चर्चा करूंगा ।

नमस्कार दोस्तो ! मैं पंडित योगेश वत्स अपने सभी सनातनी हिन्दू, भाई बहनों का अपने धर्म अध्यात्म और ज्योतिष के ब्लॉग पर बहुत बहुत स्वागत करता हूँ ।

प्रारब्ध का अर्थ ; प्रारब्ध किसे कहते हैं ?

प्रारब्ध को हम भाग्य, तकदीर,किस्मत या Destiny भी कह सकते हैं । हमने जो पूर्व जन्म में कर्म किए हैं वो अच्छे हों या बुरे वही हमारा प्रारब्ध है वही हमारा भाग्य है ।

कई बार किसी की अचानक सफलता को देख कर हम आम बोलचाल में कह देते हैं कि उस अमुक व्यक्ति को भाग्य से अचानक सफलता मिली तब हम भूल जाते हैं कि ईश्वर ना कुछ देता है ना कुछ लेता है वो सिर्फ यह देखता है कि जो आप ने किया है वो आपको मिले, अगर अच्छा किया है तो अच्छा आपको मिले अगर बुरा किया है तो बुरा आप को ही मिले । उस अमुक आदमी को जो अचानक से बिना उतना कर्म किए हुए सफलता मिली वह उसके पूर्व जन्मों के फलों के आधार पर मिली । उसके पिछले जन्मों की जमापूंजी को भगवान ने ब्याज के सहित F. D के रूप में दिया है। यही प्रारब्ध है ।

इसी को हम दूसरे संदर्भ में भी समझ सकते हैं । कोई नेता,भ्रष्टाचारी अधिकारी अन्याय करते हुए भी सुख भोगते हैं अपार धन सम्पदा इकट्ठी करते हैं , इनको भगवान सजा क्यों नहीं देते, इसी बात को लेकर अक्सर लोग कहते हैं भगवान कहीं नहीं हैं ? यही सवाल एक बार मैंने अपने परम पूज्य गुरुदेव से किया जो पहाड़ पर अपनी आध्यात्मिक यात्रा पूरी कर रहे हैं उन्होने जो जबाब दिया वही आपके सामने रख रहा हूँ ।

उन्होने कहा यह इन लोगों का प्रारब्ध है, इन्होने अपने पिछले जन्म में बहुत से सत्कर्म किये होंगे, गरीबों की सेवा की होगी, किसी मंदिर में झूठे बर्तन माँजे होंगे, नियम धर्म से चले होंगे उन्होने इतना पिछले जन्मों में जमा किया होगा कि वो खत्म नहीं हो रहा है, जिस दिन पूर्व के संचित पुण्य कर्म चुक जाएंगे उसी दिन से इनकी सजा प्रारम्भ हो जाएगी।

वो पुण्य कर्म अगर इसी जनम में समाप्त हो गये तो इसी जनम में उन्हें सजा मिल जाएगी और वो जेल में होंगे या पारवारिक कष्ट, शारीरिक कष्ट भोगेंगे नहीं तो अगले जन्म में लँगड़े लूले हो कर किसी प्लेटफॉर्म पर सड़क पर भीख मांग रहे होंगे ।

कुछ बच्चे जन्म से ही विकलांग या किसी असाध्य रोग से पीड़ित हो कर जन्म लेते हैं अब उन बेचारों ने इस जन्म में कौन सा ऐसा कर्म कर दिया जो इनको ऐसा जन्म मिला इसमें भी इन बच्चों का और इनके माँ बाप का प्रारब्ध ही इसका कारण होता है ।

पौराणिक संदर्भ :

प्रारब्ध के बहुत से संदर्भ पौराणिक इतिहास में मिलते हैं लेकिन मैं सिर्फ एक संदर्भ लूँगा जो सभी को मालूम भी है और जो रामचरितमानस में ही मिल जाएगा ।

पहला प्रसंग रामचरितमानस बालकांड से है जब कामदेव नारद जी की तपस्या किसी तरह भंग नहीं कर पाया और वो परास्त हो गया तो नारद जी को इस बात का अभिमान हो गया कि उन्होने कामदेव पर विजय प्राप्त कर ली है तो ,वह अभिमान से भरे हुए ही शंकर जी के पास गये और उन्होने गर्व के साथ यह बात शंकर जी को बताई,शंकर जी ने उन्हे चेताया कि यह बात मुझे तो बताई अब और किसी को ना बताना ।

अभिमान से कोई बच नहीं पाता चाहे वो मनुज हो,ऋषी हों या देवता । नारद जी ने यही बात अभिमान के साथ विष्णु भगवान को बताई, भगवान ने सुन तो ली लेकिन उन्होने तभी तय कर लिया कि वो अपने नारद जैसे भक्त के अंदर अभिमान जैसी बुराई नहीं रहने दे सकते । तभी उन्होने ने मायानगरी का निर्माण किया और उस मायानगरी की कन्या के स्व्यंबर का स्वांग रचा । नारद जी उस कन्या पर मोहित हो गये और उस कन्या से विवाह हेतु भगवान से सुंदर रूप मांगने गये जिस से कन्या उनके गले में वरमाला डाल दे ।

भगवान ने नारद जी का अभिमान मिटाने के लिए उन्हें बंदर का रूप दे दिया । जब कन्या ने उनके वरमाल नहीं डाली तब उन्होने अपना रूप देखा । नारद जी क्रोधित हो विष्णु भगवान के पास पहुचे तो उन्हें उस कन्या के साथ विष्णु भगवान दिखे क्योंकि वह कन्या स्वयं लक्ष्मी देवी थी । तब नारद जी ने भगवान को अज्ञानता वश माया के वशीभूत हो कर श्राप दे दिया । रामायण चौपाई देखिये नारद जी कहते हैं ……

कपि आकृति तुम कीन्ह हमारी । करिहही कीस सहाय तुम्हारी ॥

मम अपकार कीन्ह तुम भारी । नारि विरह तुम होब दुखारी ॥

भावार्थ ये कि तुमने मेरा रूप बंदर का बना दिया यही बंदर कभी तुम्हारी सहायता करेंगे, जिस कन्या को मैं चाहता था उस से तुमने मेरी शादी नहीं होने दी , तुम भी अपनी पत्नी के वियोग में दर दर भटकोगे ।

कहने का मतलब यह कि भगवान राम के जन्म से पहले उनका भाग्य या प्रारब्ध लिख गया । यह संदर्भ इस लिए लिया कि अपने प्रारब्ध से सब बंधे होते हैं भले वो भगवान ही क्यों ना हों । अपना प्रारब्ध विष्णु भगवान को ही नहीं बल्कि माँ लक्ष्मी को भी भोगना पड़ा क्योंकि उनकी भी सहभागिता उस स्व्यंबर में थी ।

क्या प्रारब्ध बदल सकता है ?

ऊपर के उद्धरण या प्रसंग से आप समझ ही गये होंगे कि प्रारब्ध में जो लिखा है वो आपको मिलना ही है कब और कैसे मिलना है यह निर्भर करता है,

हालांकि नारद जी रामचरितमानस में ही पार्वती माँ का भाग्य बाँचते समय कहते हैं …..

प्रारब्ध

” जो तपु करे कुमारि तुम्हारी । भावीउ मेंट सकें त्रिपुरारी ॥”

मतलब तप जप करने पर केवल महादेव ही लिखे हुए को मिटा सकते हैं । इतना तप और साधना कौन कर सकता है ?

हमें यह मान कर चलना चाहिये कि होनी को टाला नहीं जा सकता है । मतलब हमें प्रारब्ध को भोगना ही पड़ता है । कभी कभी यह देखा गया है किसी संत महात्मा के आशीर्वाद से हमारी कोई मनोकामना पूर्ण हो जाती है या किसी जप,पूजा, तप यज्ञ इत्यादि से हमारी बाधा दूर हो जाती है तब हमें यह मान के चलना चाहिये हमारी वो बाधा या परेशानी आगे के लिए शिफ्ट हो गई है उसका समय आगे बढ़ गया है लेकिन हमारा प्रारब्ध खत्म नहीं हुआ है ।

क्या प्रारब्ध हमें अकर्मण्य या कर्महीन बनाता है ?

इसका जबाब दो सवालों में छिपा है ।

पहला सवाल अगर आपका बेंक एकाउंट खाली है तो क्या उसमें आप पैसा नहीं डालेंगे ?

दूसरा सवाल अगर आपका बैंक अकाउंट पैसों से खूब भरा है तब भी क्या आप उस से सिर्फ निकाल निकाल कर खर्च ही करते रहेंगे ?

दोनों ही सवालों का जबाब नहीं में ही होगा ।

वैसे ही हमारा प्रारब्ध कुछ भी हो हमें अपने सत्कर्मों से अपने पुण्य खाते में हमेशा जमा करते रहना होगा । हमें मनुष्य का जन्म इसीलिए मिला है कि हम अपने पुराने अच्छे बुरे प्रारब्ध को भोगते हुए अपने भविष्य के लिए अपने पुण्यों को जमा करें ।

जो लोग गलत तरीके से अपने लिए अपनी विरासत के लिए अपने संतानों के लिए धन इकट्ठा करते हैं वो एक बात अच्छी तरह से समझ लें आपके दुष्कर्म सिर्फ आपको भोगने पड़ेंगे और इसको भगवान भी नहीं काट सकते ना अपने लिए ना आपके लिए, जिसके लिए गलत तरीकों से आप धन इकट्ठा कर रहे हैं वो आपका प्रारब्ध किसी जन्म में भी भोगने नहीं आयेंगे।

प्रारब्ध हमें अकर्मण्य नहीं बनाता बल्कि ज्यादा से ज्यादा सत्कर्म करके अपने पुण्य कर्म नाम के बैंक अकाउंट को बड़ा करने को प्रेरित करता है ।

आपका प्रारब्ध और आपकी जन्मकुंडली :

दो शब्द प्रारब्ध को लेकर ज्योतिष और जन्मकुंडली के बारे में भी करना चाहूँगा ।

प्रारब्ध पहले रचा पाछे रचा शरीर …… आपके जन्म से पहले ही आपका प्रारब्ध बना होता है, वैसे ही आपके जन्म से पहले ही आपके प्रारब्ध के अनुसार कुंडली बन जाती है । आपके प्रारब्ध के अनुसार जब योग,लगन,तिथि,और वार मिलते हैं तब आपका जन्म होता है । उस समय आपके गृह कहाँ बैठेंगे,कौन पाप प्रभाव में होंगे कौन शुभ फल देने वाले स्थान में बैठेंगे कौन वक्री होंगे कौन नीच होंगे यह सब आपके प्रारब्ध के अनुसार कुंडली में स्थान लेते हैं । ये सभी गृह आपको, आपके प्रारब्ध के अनुसार फल देने को बाध्य होंगे, जो लोग अपनी कुंडली दिखा ग्रहों का रोना रोते रहते हैं वो समझ लें कि आपकी कुंडली आपके पूर्वजन्मों की Balance sheet है ।

आज की अपनी बात :

मैंने अपने स्वाध्याय से, संत जनों के सत्संग से और गुरु कृपा से जितना जाना उतना प्रारब्ध के बारे में बताया अपने सनातनी हिन्दू भाई बहनों में से अगर किसी एक को भी इस लेख से अगर प्रेरणा मिलती है और वो सत्कर्मों की ओर अग्रसर होते हैं तो मैं समझूँगा मेरा लिखना सफल हुआ ।

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1 thought on “प्रारब्ध : आपके पूर्व जन्मों की F. D.”

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