![रामायण चौपाई अहिल्या उद्धार](https://sanaatanmandir.com/wp-content/uploads/2023/08/Sketch_1692617072555-1024x768.jpg)
रामायण चौपाई के क्रम में आज रामायण की बहुत ही भावनात्मक कथा को अपने लेख में लूँगा । यह कथा भावनात्मक(Emotional) तो है ही साथ में बहुत ही मर्मस्पर्शी (Heart Touching) भी है ।
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त्रेता युग में भगवान राम का अवतार धर्म की स्थापना के साथ साथ मर्यादाओं की स्थापना के लिए भी हुआ था तभी भगवान राम मर्यादा पुरषोत्तम कहलाये, उनका जीवन मानव जाति के लिए स्पष्ट संदेश देता है । आज भी हमें अगर किसी बात को लेकर मन में संशय उत्पन्न होता है तो हमें किसी ना किसी तरह रामायण से रामायण चौपाई से जीवन की दिशा मिलती है ।
आज की यह कथा मर्मस्पर्शी और भावनात्मक तो है ही लेकिन कहीं ना कहीं यह संदेश भी देती है कि जाने या अंजाने में जब जीवन की मर्यादाएं टूटती हैं तो जीवन एक दम सुनसान और वीरान हो जाता है ।
रामायण चौपाई, 209.6 : रामायण चौपाई अर्थ सहित
![रामायण चौपाई](https://sanaatanmandir.com/wp-content/uploads/2023/08/20230821_163024-1024x576.jpg)
आश्रम एक दीख मग माहीं। खग मृग जीव जंतु तहँ नाहीं।।
पूछा मुनिहि सिला प्रभु देखी। सकल कथा मुनि कहा बिसेषी।।
रामायण चौपाई अर्थ :
मार्ग में एक आश्रम दिखाई पड़ा जहां पर भी पशु पक्षी और जीव जन्तु कोई भी नहीं था । भगवान श्री राम ने विश्वामित्र जी से एक पत्थर की सिला को देखकर उसके बारे में पूछा तब मुनि ने विस्तार पूर्वक सब कथा राम जी को सुनाई ।
रामायण चौपाई संदर्भ :
यह रामायण चौपाई उस समय की है जब भगवान राम ने ताड़का वध के बाद विश्वामित्र की तपस्थली को राक्षसों से मुक्त कर दिया था और विश्वामित्र को जनकपुर में सीता स्वयंबर की खबर लग गई थी । विश्वामित्र जी उसी धनुष यज्ञ को दिखाने के लिए दोनों भाइयों को लेकर जब जनकपुर जा रहे होते हैं तभी उनको यह आश्रम दिखाई पड़ता है जिसका वर्णन चौपाई में किया गया है । विश्वामित्र जी उस सिला के बारे में भगवान राम को विस्तार से बताते हैं ।
सती अहिल्या की कथा : रामायण दोहा चौपाई
![रामायण दोहा](https://sanaatanmandir.com/wp-content/uploads/2023/08/20230821_163613-1024x576.jpg)
गौतम नारि श्राप बस उपल देह धरि धीर।
चरन कमल रज चाहति कृपा करहु रघुबीर।।
अहिल्या देवी को ब्रह्मा जी ने स्वयम अपने मन से उत्पन्न किया था वो ब्रह्मा जी की मानस पुत्री थीं । ब्रह्मा जी ने उनको बहुत सुंदर बनाया था सभी देवता अहिल्या पर मोहित थे, देवलोक के राजा इन्द्र स्वयम अहिल्या से विवाह करना चाहते थे लेकिन ब्रह्मा जी ने अहिल्या का ब्याह अत्री ऋषी के पुत्र गौतम ऋषी से कर दिया था ।
अहिल्या की गिनती पंच कन्याओं में होती है जो की प्रातः कालीन पूजनीय और बंदनीय मानी जाती हैं । किसी भी शुभ कार्यों से पूर्व भी पंच कन्याओं के पूजन का विधान है । अहिल्या के अलावा चार कन्याओं में द्रोपदी, सीता माता, मंदोदरी और तारा का नाम आता है, मंदोदरी रावण की पत्नी थी और तारा सुग्रीव के भाई बाली की पत्नी थी जिसका वध भगवान श्री राम ने किया था ।
इन्द्र देव का विवाह तो अहिल्या से नहीं हो पाया था लेकिन उसके मन से अहिल्या का मोह नहीं गया था । अहिल्या को पाने के लिए इन्द्र ने छल का प्रयोग किया, एक रात जब गौतम ऋषी अपनी कुटिया से बाहर गये हुए थे तो इन्द्र गौतम ऋषी का भेष रख के आ गया,अहिल्या पहचान नहीं पायीं और उन्होने इन्द्र देव से संबंध बना लिए । उधर अचानक गौतम ऋषी समय से पहले आ गए और उन्होने इन्द्र को कुटिया से निकलते हुए देख लिया ।
अहिल्या को तब समझ मे आया कि वो उनके साथ उनके पति नहीं कोई और था । गौतम ऋषी बहुत क्रोधित हुए, क्रोधित हो कर गौतम ऋषी ने अहिल्या को पत्थर की सिला होने का श्राप दे दिया । अहिल्या के बताने पर उनको बात तो समझ आई लेकिन वो श्राप दे चुके थे और वो श्राप वापिस नहीं हो सकता था उन्होने बस त्रेता युग में भगवान के चरणों से उद्धार होने का आशीर्वाद जरूर दे दिया और वो अहिल्या को त्याग कर चले गए । कितनी सदियों के इंतिज़ार के बाद भगवान उसकी कुटिया मे पधारे ,सदियों तक अहिल्या अपनी ही कुटिया में पत्थर बनी पड़ी रही ।
रामायण चौपाई के अगर इन संकेतों को हम समझें तो यही समझ आता है । जब भी स्त्री की मर्यादा टूटती है और समाज उसको चरित्रहीन समझने लगता है, तो उस से पूरा समाज किनारा कर जाता है और वह अपने आप में एक बुत सा बन कर रह जाती है उसका जीवन पत्थर की तरह हो जाता है । पहली चौपाई में यही दर्शाया गया है कि अहिल्या की कुटिया निर्जन थी यहाँ तक की पशु पक्षी भी साथ छोड़ गए थे ।
यहाँ सवाल तो मन में जरूर उठते हैं कि क्या गौतम ऋषी को इतना कठोर श्राप देना चाहिए था वो भी तब जब अहिल्या से पाप अंजाने में हुआ था । लेकिन एक बात जरूर है अगर किसी का स्थान इतना ऊंचा हो कि उसे सती का पद प्राप्त हो और पंच कन्याओं के रूप में प्रथम पूज्य हो तो ऐसी किसी भी स्त्री का एक छोटा सा पाप भी बड़ा हो जाता है और यहाँ तो स्त्रीतित्व की मर्यादा का हनन हुआ था इसलिए इस पाप से मुक्ति बिना भगवान के नहीं हो सकती थी ।
अहिल्या की सिला को भगवान अपने पैरों से छूते हैं और अहिल्या सजीव हो उठती है और अपने ईष्ट को सामने पा कर उनकी स्तुति करती है । स्तुति के बाद भगवान उसको मोक्ष दे कर अपने परम धाम को भेज देते हैं ।
चलते चलते अपनी बात :
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