रामायण प्रसंग : मां पार्वती की घोर तपस्या

रामायण प्रसंग

रामायण प्रसंग में आज एक छोटा मगर बहुत महत्वपूर्ण प्रसंग लूँगा । माँ पार्वती ने अपने आराध्य अपने प्रेम और अपने शिव को पाने के लिए कितनी कठोर तपस्या की ।

सभी सनातनी हिन्दू भाई बहनों को पंडित योगेश वत्स का राम राम ! मैं अपने धर्म,अध्यात्म और ज्योतिष के पेज पर सभी भाई बहनों का स्वागत करता हूँ । जो लोग विदेश से पेज पर जुड़ रहें हैं उनका भी बहुत बहुत आभार के साथ स्वागत ।

मैंने अपने पिछले लेख क्या जोड़ियाँ भगवान बनाते हैं, में चर्चा की थी जब नारद जी पर्वत राज हिमालय के यहाँ जन्मी कन्या को देखने आते हैं तो राजा नारद जी से कन्या का भविष्य जानने की इच्छा प्रगट करते हैं । नारद जी कन्या को देख उसके गुणों का वर्णन करते हैं और साथ ही साथ उस कन्या को मिलने वाले वर के अवगुणो के बारें में बताते हैं ( इस कथा के विस्तार में नहीं जा रहा क्योंकि पिछले लेख में इसको काफी विस्तार से लिखा गया था जिन भाई बहनों को पढ़ना है वो लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं )

उसी समय नारद जी कहते हैं ….

” जो तप करे कुमारि तुम्हारी । भावीउ मेंट सकहि त्रिपुरारी ॥ ”

माँ पार्वती की तपस्या का आधार तभी बन गया था । तुलसीदास जी ने अपने रामचरितमानस में इस तपस्या को चार चौपाइयों में लिखा है लेकिन तपस्या कितनी कठोर थी वो यह बताना नहीं भूले ।

जो भी भक्त नियमित रामचरितमानस का पाठ करते हैं या सत्संग में रहते हैं वो तो समझ सकते हैं लेकिन सामान्य पाठकों का ध्यान इस छोटे से प्रसंग पर नहीं गया होगा । हालांकि तुलसीदास जी एक चौपाई में बताना नहीं भूलते ……..

” अस तपु कांहु ना कीन भवानी । भए अनेक धीर मुनि ज्ञानी ॥

मतलब वैसे तो बहुत धीर,मुनि,और ज्ञानी हुए हैं लेकिन जैसा माँ भवानी ने अपने शिव को पाने के लिए तप किया वैसा किसी ने नहीं किया ।

माँ पार्वती से अपने पिछले जन्म में सिर्फ एक गलती हुई थी जिसके कारण उनको इस जन्म में पुनः शिव को पाने के लिए कितना कठोर तप करना पड़ा । चाहे इंसान हो या भगवान सभी को अपने पिछले जन्मों के कर्मों के फल प्रारब्ध के रूप में भोगने ही पड़ते हैं ।

माँ पार्वती जब तपस्या के लिए घनघोर वन के लिए निकलीं तो उनकी अवस्था बालावस्था थी, आगे की चौपाइयों में आप देखेंगे कि माँ की तपस्या कितनी कठोर थी ….. …..

पार्वती की तपस्या : बालकांड रामायण चौपाई

उर धरि उमा प्रानपति चरना। जाइ बिपिन लागीं तपु करना।।
अति सुकुमार न तनु तप जोगू। पति पद सुमिरि तजेउ सबु भोगू।।


नित नव चरन उपज अनुरागा। बिसरी देह तपहिं मनु लागा।।
संबत सहस मूल फल खाए। सागु खाइ सत बरष गवाँए।।


कछु दिन भोजनु बारि बतासा। किए कठिन कछु दिन उपबासा।।
बेल पाती महि परइ सुखाई। तीनि सहस संबत सोई खाई।।


पुनि परिहरे सुखानेउ परना। उमहि नाम तब भयउ अपरना।।
देखि उमहि तप खीन सरीरा। ब्रह्मगिरा भै गगन गभीरा।।

चौपाई हिन्दी अर्थ :

प्राणपति के चरणों को हृदय मे धारण करके पार्वती जी वन में जाकर तप करने लगीं । पार्वती का अत्यंत सुकुमार शरीर तप के योग्य नहीं था, तो भी पति के चरणों का स्मरण करके उन्होने सब भोगों को तज दिया ।

स्वामी के चरणों में नित्य नया अनुराग उत्पन्न होने लगा और तप में ऐसा मन लगा कि शरीर की सुध बिसर गई । एक हजार वर्षों तक उन्होने मूल (जड़ ) और फल खाये फिर सौ वर्ष साग खा कर बिताए ।

कुछ दिन जल और वायु का भोजन किया और फिर कुछ दिन कठोर उपवास किये । जो बेल पत्र सूखकर पृथ्वी पर गिरते थे, तीन हजार वर्षों तक सिर्फ उन्ही को खाया ।

फिर सूखे पत्ते भी खाने छोड़ दिये, तभी पार्वती का नाम अपर्णा हुआ । तप से उमा का शरीर क्षीण देख कर आकाश से गंभीर ब्रह्मवाणी हुई …..

रामचरितमानस दोहा :

रामायण प्रसंग

भयउ मनोरथ सुफल तव सुनु गिरिजाकुमारि।
परिहरु दुसह कलेस सब अब मिलिहहिं त्रिपुरारि।।

भावार्थ : हे पर्वत राज की कुमारी, सुन तुम्हारा मनोरथ सफल हुआ तो अब सारे असह्य और कठिन तप को त्याग दे । अब तुझे शिव जी मिलेंगे ।

सारांश :

माँ पार्वती को भी पूज्य बनने के लिए पहले तपना पड़ता है । युग कोई हो और योनि कोई हो, देव हो,देवी हो, साधू हो, मनुष्य हो सबको बिना तप के कुछ नहीं मिलता चाहे वो ईष्ट हो या इच्छा पूर्ति । कोई भी किसी भी क्षेत्र में हो बिना तपे पूज्य नहीं बन सकता,सोना भी आग की भट्टी में तपने के बाद ही सोना बनता है ।

शिव माँ पार्वती के आराध्य भी थे, प्रेम भी थे और पति भी थे वो भी हर जन्म में इसीलिए उन्होने शिव को पाने के लिए इतनी कठोर तपस्या की ।

चलते चलते अपनी बात :

सभी Sanatani Hindu, भाई बहनों का बहुत बहुत धन्यवाद जो आप लेख पर आए और लेख को पढ़ा । रामचरितमानस एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें आपको हर सवाल का जबाब मिल जाएगा, जो भी लोग मानस से प्रेम करते हैं उनको भगवान राम, महादेव के साथ साथ हनुमान जी का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है ।

हर किसी सनातनी को रामायण की कुछ चौपाइयों का पाठ नियमित करना चाहिए आप विश्वास मानिए आप एक बार रामचरितमानस से जुड़ेंगे तो आप को कुछ मिले न मिले भगवान श्री राम के चरणों का प्रेम जरूर मिलेगा । ये प्रेम जब मिलेगा तब आप जानेगे यही सुख परम सुख है यही आनंद परम आनंद है ।

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