चाहे Love Marriage हो या Arrange Marriage कोई किसी से यूँ ही नहीं मिल जाता कुछ तो संयोग होते हैं ? क्या जोड़ियां भगवान बनाते है, ये स्वाभाविक से सवाल अक्सर सभी के मन में आते हैं ।
हमारे शास्त्र इस बारे में क्या कहते हैं, रामायण, रामचरित मानस क्या कहती है ? रामचरितमानस को सभी वेदों पुराणों का सार या निचोड़ कहा गया है, इस लिए मैं इस सवाल के जबाब के लिए रामचरितमानस चौपाई का ही आश्रय लूँगा ।
राम राम दोस्तो ! मैं पंडित योगेश वत्स सभी सनातनी हिन्दू, भाई बहनों का अपने धर्म,अध्यात्म और ज्योतिष के ब्लॉग पर बहुत बहुत स्वागत है ।
विदेश से जुड़े हुए अपने सभी भाई बहनों का विशेष आभार के साथ स्वागत करता हूँ क्योंकि वो आज भी अपनी मिट्टी से जुड़े हुए हैं तभी इस ब्लॉग पर आए हैं । यह आपका अपने देश और संस्कृति से प्यार मुझे बहुत अभिभूत करता है ।
चलिये विषय पर बढ़ते हैं …..
क्या जोड़ियाँ भगवान बनाते है : यह एक गंभीर विषय है इसलिए मैंने इसके लिए रामचरितमानस का सहारा लिया है, अपने विचार रखने से पहले मैंने तथ्य ही रखे हैं अंत में अपने विचार भी रखे हैं,बस एक निवेदन है कि आप लेख से सहमत हों या असहमत,अपनी कोई भी राय बनाने के लिए आप स्वतंत्र हैं लेकिन कोई राय बनाने से पहले लेख को गंभीरता से पढ़ें जरूर ।
रामायण दोहा अर्थ सहित 66 ;
![क्या जोड़ियां भगवान बनाते है : रामायण दोहा](https://sanaatanmandir.com/wp-content/uploads/2023/08/20230805_162344-300x169.jpg)
त्रिकालज्ञ सर्वज्ञ तुम्ह गति सर्वत्र तुम्हारि । कहहु सुता के दोष गुन मुनिबर हृदय बिचारि ॥
रामायण दोहा अर्थ :
मुनिबर आप त्रिकाल दर्शी हो, आप सब कुछ जानते हो,आप सभी जगह आ जा सकते हो अतः आप हृदय में विचार कर कन्या के गुन दोष कहिये ।
संदर्भ :
यह दोहा उस समय का है जब पर्वत राज हिमालय के यहाँ माँ पार्वती का जन्म होता है, देव ऋषि नारद त्रिकाल दर्शी हैं उन्हे ज्ञात हो जाता है कि माँ सती ने अपना जन्म ले लिया है तो वह माँ के दर्शन को पहुँचते हैं । पर्वत राज इस बात से अनभिज्ञ थे वैसे भी जब कोई राजा महाराजा के यहाँ कोई संत या ऋषी पधारते थे तो वह राजा अपने राज्य अपने परिवार के भविष्य के बारे में जरूर पूछते थे, नई कन्या का जन्म हो और देव ऋषि का आगमन हो तो राजा की स्वाभाविक जिज्ञाषा जागी तो उन्होने नारद जी से अपने घर जन्मी कन्या के भविष्य के बारे में पूछा ।
बालकांड रामायण चौपाई : रामायण चौपाई अर्थ सहित
कह मुनि बिहसि गूढ़ मृदु बानी। सुता तुम्हारि सकल गुन खानी।।
सुंदर सहज सुसील सयानी। नाम उमा अंबिका भवानी।।
सब लच्छन संपन्न कुमारी। होइहि संतत पियहि पिआरी।।
सदा अचल एहि कर अहिवाता। एहि तें जसु पैहहिं पितु माता।।
होइहि पूज्य सकल जग माहीं। एहि सेवत कछु दुर्लभ नाहीं।।
एहि कर नामु सुमिरि संसारा। त्रिय चढ़हहिं पतिब्रत असिधारा।।
रामचरितमानस चौपाई अर्थ :
नारद जी माँ पार्वती के पिता से हँसकर गूढ और रहस्य से भरी हुई वाणी में कहते हैं ….
तुम्हारी कन्या सब गुणो की खान है । वह सुंदर सुशील और परम चतुर है । इसका नाम उमा, अम्बिका,और भवानी होगा । कन्या सब सुलक्षणों से सम्पन्न होगी ।यह पति को बहुत प्यारी होगी और इसका सुहाग सदा अचल होगा और इस कन्या से इसके माता पिता यश पाएंगे ।
यह सारे जगत में पूजी जाएगी और इसकी सेवा करने से कुछ भी पाना दुर्लभ ना होगा । संसार की स्त्रियाँ इसका नाम स्मरण करके पतिव्रत रूपी तलवार की धार पर चढ़ जाएंगी ।
देव ऋषी नारद के गूढ वचन : बाल कांड रामचरितमानस चौपाई
सैल सुलच्छन सुता तुम्हारी। सुनहु जे अब अवगुन दुइ चारी।।
अगुन अमान मातु पितु हीना। उदासीन सब संसय छीना।।
पार्वती माँ के बारे में उनके गुणो के वर्णन के बाद नारद जी आगे कहते है ……हे पर्वत राज आपकी कन्या सुलक्षणी है । अब इसके जो अवगुण हैं वो भी सुन लो ( मेरा मत है नारद जी यहाँ पार्वती माँ के बारे में नहीं उनके होने वाले पति के अवगुणो के बारे में कहते हैं ) गुणहीन,मानहीन,मातापिता विहीन, उदासीन,लापरवाह ( पति मिलेगा )
रामचरितमानस दोहा : 67:
जोगी जटिल अकाम मन नगन अमंगल भेष । अस स्वामी एहि कंह मिलिहि परी हस्त असि रेख ॥
रामायण दोहा अर्थ :
योगी,जटाधारी,निष्काम हृदय, नंगा और अमंगल भेष वाला पति इसको मिलेगा ऐसी ही रेखा इस के हाथ में पड़ी है ।
व्याख्या :
नारद जी द्वारा यह बताना कि उनकी कन्या को ऐसा वर मिलेगा यह सुनकर किसी भी माता पिता पर क्या बीतेगी भले वो राजा हो या रंक । नारद जी तो त्रिकाल दर्शी हैं उन्हे भूत,भविष्य और वर्तमान तीनों का ज्ञान है और वो तीनों देख सकते हैं । इस संदर्भ से दो बातें स्पष्ट होती हैं कि नवजात कन्या के हाथ में या जन्म पत्री में यह संकेत होते हैं कि उसको कैसा वर मिलेगा । आगे की चौपाइयों और घटना क्रम से यह बात और स्पष्ट हो जायेगी ।
वर्तमान परिद्रष्य में अगर इसके संदर्भ में विचार करें अगर कोई पंडित,ज्योतिष,या संत महात्मा किसी कन्या के बारे में उसके माता पिता को अगर ऐसा वर बता दे तो उसकी क्या हालत हो, सबसे पहले उस संत,महात्मा या पंडित के ज्ञान पर ही संदेह हो जाएगा अगर मान लो अगर माता पिता बहुत विश्वास करने वाले हुए तो वह भरोसा करते ही बोलेंगे कि कोई उपाय बताओ जिस से यह दोष कट जाये ।
माँ पार्वती के माता पिता पर भी वही असर हुआ जो किसी अन्य माँ बाप पर होता लेकिन माँ पार्वती पर क्या असर हुआ आगे देखिये …..
रामचरितमानस बालकांड चौपाई :
सुनि मुनि गिरा सत्य जियँ जानी। दुख दंपतिहि उमा हरषानी।।
नारद जी की वाणी सुनकर माता और पिता को दुख हुआ लेकिन माता पार्वती को खुशी हुई ।
माता पार्वती को हर्ष क्यों हुआ यह भेद नारद जी भी नहीं जान पाये क्योंकि बाहर का हर्ष विषाद तो दिखता है लेकिन मन का दुख या खुशी नहीं दिखती ।
पार्वती क्यों खुश हुई ? क्या उन्हें मालूम था कि जो पिछले जन्म का रिश्ता छूट गया था वो फिर मिलने वाला है ? क्या शिव पार्वती का विवाह प्रेम विवाह था ?
क्या प्रेम विवाह भी पूर्व निर्धारित होते हैं ? क्या शिव पार्वती का विवाह प्रेम विवाह था ?
मैं अभी किसी भी बात पर अपनी राय नहीं दे रहा मैं सिर्फ तथ्य रख रहा हूँ, सारे तथ्यों को पढ़ने के बाद मेरी राय की जरूरत नहीं रहेगी हालांकि मैं क्या सोचता हूँ उस पर दो शब्द अंत में कहूँगा जरूर लेकिन अभी सिर्फ वही कहूँगा जो रामचरितमानस कह रही है ।
रामचरितमानस बालकांड चौपाई :
होइ न मृषा देवरिषि भाषा। उमा सो बचनु हृदयँ धरि राखा।।
उपजेउ सिव पद कमल सनेहू। मिलन कठिन मन भा संदेहू।।
जानि कुअवसरु प्रीति दुराई। सखी उछँग बैठी पुनि जाई।।
भावार्थ :
नारद जी की वाणी सुन माँ पार्वती सोचती हैं कि देव ऋषि नारद के वचन या जो भविष्य वाणी उन्होने की है वो झूठ नहीं हो सकती इसलिए उन्होने नारद जी के वचनों को मन में बांध कर रख लिया ।
दूसरी चौपाई कहती है कि नारद जी के वचन सुनकर माँ पार्वती के मन में शिव के प्रति प्रेम और स्नेह उत्पन्न हो गया लेकिन उनसे मिलन आसान नहीं है, बहुत मुश्किल है यह संदेह भी साथ साथ उत्पन्न हुआ ।
यह अवसर उचित नहीं है यह सोचकर माता पार्वती ने अपने प्रेम को छिपा लिया और अपनी सहेलियों की गोद में जा कर बैठ गईं ।
टिप्पणी :
इन तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है कि हर किसी का संबंध कहीं ना कहीं किसी न किसी रूप में जुड़ा होता है । सनातन धर्म में यह माना जाता है कि आत्मा अजर है अमर है, वह केवल शरीर रूपी चोला बदलती है, एक जन्म में किसी शरीर में होती है तो अगले जन्म में किसी और शरीर में ।
जब नारद जी ने पार्वती के भविष्य के बारे में बताया तो माँ पार्वती की आत्मा ने अपने पूर्व जन्म के अपने आत्मिक बंधन के कारण उस आत्मा से अपने आप को जुड़ा हुआ पाया, इसको आप प्रेम भी कह सकते हैं ।
किसी का किसी से जुड़ाव एक जन्म का नहीं होता है ये संबंध जन्म जन्मांतर के होते हैं, आज इस लेख में सिर्फ वैवाहिक संबंध के बारे में ही बात करनी है इसलिए बाकी समन्धों और पूर्व जन्मों के बारे में किसी अन्य लेख में बात करूंगा नहीं तो लेख भी बड़ा होगा और विषयांतर भी होगा ।
नारद जी का उपाय या सुझाव :
जब पर्वतराज ने नारद जी के द्वारा पार्वती जी के होने वाले पति के बारे में सुना तो उन्हें चिंता हुई, तब महाराज ने नारद जी से इसका उपाय पूछा, नारद जी ने उपाय बताने से पूर्व जो कहा वो सबसे महत्वपूर्ण है,नारद जी के ये वचन जो दोहा के रूप में मैं आगे दे रहा हूँ वह हर किसी को अपने मन में उतार लेना चाहिए ।
रामचरितमानस बालकांड दोहा 68 :
![क्या जोड़ियां भगवान बनाते है : बालकांड रामायण दोहा](https://sanaatanmandir.com/wp-content/uploads/2023/08/20230805_163313-300x169.jpg)
कह मुनीस हिमवंत सुन जो विधि लिखा लिलार । देव दनुज नर नाग मुनि कोऊ न मेटनिहार ॥
रामायण दोहा अर्थ :
नारद जी ने कहा …. हे राजा सुनो, जो भी विधाता ने माथे पर या भाग्य में लिख दिया है उसको देवता,दानव,मनुष्य,नाग, या कोई साधू संत कोई भी मिटा नहीं सकता ।
आगे की चौपाइयों में नारद जी हिमालय को समझाते हैं कि वैसे तो आपकी कन्या के लिए बहुत से वर हैं लेकिन पार्वती जी के लिए महादेव ही बने हैं अगर शंकर से पार्वती का ब्याह होता है तो जो मैंने वर में अवगुण बताए हैं वो भी शंकर के लिए गुण ही समझे जाएँगे ।
इसका उपाय एक ही है कि अगर आपकी कन्या तपस्या करे तो महादेव ही भविष्य को बदल सकते हैं ।
बालकांड रामायण चौपाई :
जो तपु करे कुमारि तुम्हारी । भावीउ मेटि सकहि त्रिपुरारी ॥
नारद जी यह सब बता के आशीर्वाद दे कर चले जाते हैं । पार्वती जी उसी समय से अपने प्रेम,अपने पति को पाने के लिए मन ही मन ठान लेती हैं उनके माता पिता के मन में संदेह होता है लेकिन माँ पार्वती का निश्चय दृढ़ होता है उन्हे मालूम होता है कि उनके पति के लिए सिर्फ महादेव ही बने हैं । वो जैसी तपस्या शंकर भगवान को पाने के लिए करती हैं वैसी तपस्या बड़े बड़े महात्मा और मुनि भी नहीं कर पाते, उनकी तपस्या के बारे में भी कोई अन्य लेख लिखूंगा अभी सिर्फ यही कहना चाहूँगा उनकी तपस्या में भी पूर्व जन्म का पश्चाताप ही समझ आता है जो उन्होने अपने पति की बात ना मान कर उनका कहीं ना कहीं अपमान ही किया था ।
शिव पार्वती विवाह : बालकांड रामायण चौपाई :
![क्या जोड़ियां भगवान बनाते है](https://sanaatanmandir.com/wp-content/uploads/2023/08/Sketch_1691223523428-300x300.jpg)
माँ पार्वती की कठोर तपस्या के बाद आकाशवाणी होती है कि माँ की तपस्या सफल हुई और उनको निश्चित रूप से शिव मिलेंगे ।
उधर भगवान के अनुरोध पर भोलेनाथ शादी को तैयार होते हैं लेकिन उसके पहले वो सप्त ऋषियों को माँ पार्वती की प्रेम की परीक्षा लेने के लिए भेजते हैं,( यहाँ परीक्षा से ज्यादा ये समझा जाना चाहिए कि शिव, माँ पार्वती का मन और सहमति जान ने के लिए सप्त ऋषियों को भेजते हैं ।
जब सप्तऋषि वापिस आ कर शिव जी को संतुष्ट कर देते हैं तब शंकर जी शादी को तैयार होते हैं और बारात ले कर शादी करने पहुँचते हैं ।
जब दूल्हे के बारे में और बारात के बारे में नगरवासी और माँ पार्वती के माता पिता सुनते हैं तो दुखी हो जाते हैं, हालांकि उनके माता पिता को नारद जी उमा के जन्म के बाद ही सब बता जाते हैं फिर भी वह दुखी होते हैं ।
एक बार फिर से नारद जी का आगमन होता है और वह पार्वती जी के पूर्व जन्म की कथा सुनाते हुए समझाते हैं कि पार्वती जी जन्म जन्म से शंकर जी की ही हैं इसलिए इनका विवाह सभी के लिए शुभकारी है ।
तब नारद सबहि समुझावा। पूरुब कथाप्रसंगु सुनावा।। मयना सत्य सुनहु मम बानी। जगदंबा तव सुता भवानी।। अजा अनादि सक्ति अबिनासिनि। सदा संभु अरधंग निवासिनि।। जग संभव पालन लय कारिनि। निज इच्छा लीला बपु धारिनि।। जनमीं प्रथम दच्छ गृह जाई। नामु सती सुंदर तनु पाई।। तहँहुँ सती संकरहि बिबाहीं। कथा प्रसिद्ध सकल जग माहीं।। एक बार आवत सिव संगा। देखेउ रघुकुल कमल पतंगा।। भयउ मोहु सिव कहा न कीन्हा। भ्रम बस बेषु सीय कर लीन्हा।।
रामचरितमानस बालकांड छंद :
सिय बेषु सती जो कीन्ह तेहि अपराध संकर परिहरीं। हर बिरहँ जाइ बहोरि पितु कें जग्य जोगानल जरीं।। अब जनमि तुम्हरे भवन निज पति लागि दारुन तपु किया। अस जानि संसय तजहु गिरिजा सर्बदा संकर प्रिया।
भावार्थ :
नारद जी सबको माँ पार्वती की पूर्व जन्म की कथा सुनाते हुए समझाते हैं । वो कहते हैं तुम्हारी यह लड़की साक्षात जग जननी भवानी है,ये अजन्मा है, अनादि और अविनाशिनी शक्ति है । ये जगत की उत्पत्ति,पालन और संहार करने वाली है । यह अपनी इच्छा से ही लीला शरीर धारण करने वाली है ।
पूर्व जन्म में यह राजा दक्ष के यहाँ जन्मी थी तब इसका नाम सती था,बहुत सुंदर शरीर पाया था । तब भी सती शंकर जी को ब्याही गई थी, यह कथा सारे जगत को मालूम है ।
एक बार इन्होने शंकर जी के साथ आते हुए रास्ते में श्री रामचन्द्र जी को देखा तब इन्होने रामचन्द्र जी की परीक्षा लेने के लिए महादेव के समझाने और मना करने के बाद भी सीता जी का भेष बना लिया ।
सती जी ने जो सीता जी का भेष धारण किया उसी अपराध के कारण शंकर जी ने उन्हे त्याग दिया । फिर शिव जी के वियोग में अपने पिता के यहाँ यज्ञ में जाकर योगाग्नि से खुद को भष्म कर लिया । अब इन्होने तुम्हारे घर जन्म लेकर अपने पति को पाने के लिए कठिन तप किया है, ऐसा जानकर संदेह छोड़ दो, पार्वती जी तो सदा से शंकर की प्रिया हैं,पत्नी हैं ।
क्या जोड़ियां भगवान बनाते है : निष्कर्ष और सार :
अपने शास्त्रों और पुराणों में बहुत से ऐसे कथा प्रसंग मिलते हैं जिनसे पुनर्जन्म की अवधारणा को बल मिलता है । किसी भी काल खण्ड में, किसी भी युग में भगवान का अवतार इस धरती पर मानव जीवन को एक दिशा देने के लिए होता है धर्म की पुनरस्थापना के लिए होता है ।
मैंने इस कथा प्रसंग को इसलिए लिया क्योंकि ज़्यादातर लोग इस प्रसंग से परिचित होंगे । इस कथा प्रसंग से यह स्पष्ट है कि शादी का बंधन जन्म जन्मांतर का होता है । शादी का रिश्ता चाहे अच्छा चले या बुरा, लंबे समय तक चले या कम समय तक यह बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आप के अपने पति या पत्नी से पूर्व जन्म में संबंध कैसे रहे हैं । अगर पिछले जन्म में आपके द्वारा बुरा बर्ताव किया गया है तो आप को इस जनम में दूसरी तरफ से वैसा ही बर्ताव मिलेगा ।
माँ पार्वती की एक ही गलती थी जो उन्होने सीता जी का रूप लिया और यह बात शिव जी से छिपाई भी इसका उनको अगले जन्म में कठोर तप कर के पश्चाताप करना पड़ा, लेकिन यह नहीं हुआ कि उनको अगले जन्म में कोई और पति मिल गया हो, मिले उनको शिव जी ही ।
शिव पार्वती की यह लीला हमारे लिए यह स्पष्ट संदेश देती है कि जोड़ियाँ भगवान ही बनाते हैं । जोड़िया ऊपर से ही बनकर आती हैं ।
जो लोग सनातन धर्म में, सनातन संस्कृति में विश्वास करते हैं उन्हें इसमें कुछ गलत नहीं लगेगा, जो लोग सनातनी संस्कृति में विश्वास नहीं करते उनके लिए तो यही कह सकता हूँ ईश्वर उन्हे सद्बुद्धि दे ।
चलते चलते अपनी बात :
सबसे पहले तो आपको धन्यवाद देना चाहूँगा कि आप लेख के अंतिम भाग तक साथ रहे और आपने पूरा लेख पढ़ा ।
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