भरत चरित्र की महिमा भाग 1 : The Noble Path of Bharat; अयोध्या कांड की अंतिम चौपाइयाँ

आज मैं इस लेख में भरत चरित्र की महिमा पर अपनी बात रखूँगा,जिसके लिए मेरा संदर्भ अयोध्या कांड की अंतिम चौपाइयाँ होंगी । सामान्यतः जब भी भरत चरित्र की महिमा की बात होती है तो भरत मिलाप का संदर्भ लिया जाता है लेकिन मैंने रामायण की अन्य चौपाइयों की शरण ली है । भरत का चरित्र विशाल है उसका वर्णन करना असंभव है,लेकिन मेरा अपना रामायण से प्रेम है उस प्रेम की दृष्टि से जो कुछ मुझे दिखता है उसी को गुरु कृपा से यहाँ रखता हूँ ।

नमस्कार,राम राम !!!

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चलिये आगे बढ़ते हैं भरत चरित्र की महिमा के लिए अयोध्या कांड की कुछ चौपाइयाँ लेते हैं ।

अयोध्या कांड रामायण का अंतिम सोरठा : भरत चरित्र की महिमा

भरत चरित्र की महिमा

भरत चरित करि नेमु तुलसी जो सादर सुनहिं।
सीय राम पद पेमु अवसि होइ भव रस बिरति।।

भावार्थ : 

 तुलसी दास जी कहते हैं कि जो कोई भी भरत जी के चरित्र को नियम से आदर पूर्वक सुनेगा,उसको अवश्य ही श्री सीताराम जी के चरणों से प्रेम उत्पन्न होगा और सांसरिक विषय रस से विराग हो जाएगा । 

रामायण के सातों कांडो का अपना अलग अलग महत्व है,अयोध्या कांड के मूल में भरत चरित्र है कभी किसी लेख में अयोध्या कांड पर अलग से चर्चा करूंगा लेकिन आज भरत चरित्र की महिमा का दिन है तो उस से भट्कूंगा नहीं । श्री भरत जी 14 साल तक जब तक श्री राम वापिस अयोध्या नहीं लौटे तब तक राजा रहे और सारे राज काज श्री राम की चरण पादुका के आश्रय में पूर्ण ज़िम्मेदारी से संभाले लेकिन वो राज मद से,सांसारिक विषय रस से विरक्त रहे ।

जब हमारा राग,प्रेम,मोह, केवल श्री हरि के चरणों में होता है तो हमें कोई भी अन्य राग या मोह बांध नहीं पाता है और हम सांसरिक होते हुए भी संसार से विरक्त रह सकते हैं ।

वो राज काज किस भांति करते हैं उसे भी तुलसी दास जी ने अगले दोहे में लिखा है ।

अयोध्या कांड दोहा 325 : भरत चरित्र की महिमा

भरत चरित्र की महिमा

नित पूजत प्रभु पाँवरी प्रीति न हृदयँ समाति।।
मागि मागि आयसु करत राज काज बहु भाँति।।

भावार्थ : 

   वे (भरत) प्रतिदिन प्रभु की पादुकाओं का पूजन करते हैं,हृदय मेँ प्रेम समा नहीं पाता है । भरत जी पादुकाओं से आज्ञा मांग मांग कर सब प्रकार की राज्य व्यवस्था करते हैं । 

भरत चरित्र की महिमा अपार है वो आज भी उतनी ही सार्थक है जितनी त्रेता युग मेँ थी, उनका चरित्र आज भी अनुकरणीय है । जब भी भाई से भाई  के प्रेम की बात होती है तो सबसे पहले भरत का चरित्र ही सामने आता है ।

भ्रात प्रेम के अलावा भी भरत के चरित्र से बहुत कुछ सीखने वाला है, वो दिन प्रतिदिन के काम काज कैसे करते हैं ? प्रभु की पादुकाओं से आज्ञा मांग मांग कर सब प्रकार के काम करते हैं । भगवान श्री राम प्रत्यक्ष रूप से उनके साथ नहीं थे लेकिन वो उनकी चरण पादुकाओं मेँ ही उनको देखते थे और उनसे ही सब आज्ञा लेते थे ।

अगर हम भी अपने आप को पूर्ण रूप से भगवान को समर्पित कर दें और उनसे आज्ञा ले कर ही दिन प्रतिदिन के कार्य करें तो हमसे ना कभी कुछ गलत कार्य होगा ना ही हम किसी पाप के भागीदार बनेंगे ।

हम सभी के घर के मंदिर मेँ अप्रत्यक्ष रूप से भगवान विराजमान हैं और सभी भक्त नियमित रूप से उनके सामने कुछ न कुछ समय पूजा के लिए बैठते हैं, क्या हम उनसे समर्पण भाव से पूछते हैं कि हमें कौन से काम करने चाहिए और कौन से काम नहीं करने चाहिए ।

हम सभी काम के निर्णय स्वयं लेते हैं,काम मेँ अगर सफलता मिल गई या काम अच्छे से हो गया तो हम कहते हैं कि देखो अमुक काम मैंने किया और सफल हुआ,अगर काम मेँ असफलता मिल गई तो दोष किस्मत को देते हैं या भगवान को देते हैं । आप कर्ता नहीं हैं कर्ता एक ही है …….. ।

अयोध्या कांड की चौपाई : भरत चरित्र की महिमा

भरत चरित्र की महिमा

   परम पुनीत भरत आचरनू। मधुर मंजु मुद मंगल करनू।।
हरन कठिन कलि कलुष कलेसू। महामोह निसि दलन दिनेसू।।

भावार्थ : 

तुलसीदास जी कहते हैं की भरत जी का चरित्र मधुर,सुंदर,आनंद करने वाला और सभी का मंगल करने वाला है । कलयुग के घोर पापों और दुखों को दूर करने वाला है । महा मोह रूपी रात्रि को नष्ट करने के लिए सूर्य के समान है ।  

पाप पुंज कुंजर मृगराजू। समन सकल संताप समाजू।
जन रंजन भंजन भव भारू। राम सनेह सुधाकर सारू।।

भावार्थ : 

हाथियों जैसे पापों के समूह  के लिए सिंह के समान है,सारे संतापों को नष्ट करने वाला है । भक्तों को आनंद देने वाला है और संसार के दुखों को दूर करने वाला है तथा भगवान श्री राम के प्रेम रूपी चंद्रमा का सार ( अमृत ) है । 

श्री भरत चरित्र की महिमा भी भगवान श्री राम के चरित्र की तरह ही अपार है, रामचरितमानस के बालकांड मेँ एक प्रसंग आया भी है,सीता राम विवाह के समय जब चारों भाई जनकपुरी मेँ भ्रमण कर रहे होते हैं तो जनकपुर के नर नारी आपस मेँ बात करते हुए कहते हैं कि जो श्याम वर्ण के अर्थात साँवले से राम जैसे दिख रहे हैं वो श्री भरत हैं और जो गौर वर्ण के लक्षमन जैसे दिख रहे हैं वो शत्रुघन हैं ।

भरत का चरित्र भी श्री राम की तरह मंगलकारी और सुख देने वाला है सभी भक्तों को भरत के चरित्र को जरूर पढ़ना,सुनना चाहिए और आप विश्वास मानिए अगर आप भरत के चरित्र को सुनते पढ़ते हैं तो आपको दो लाभ निश्चित मिलेंगे एक तो आप को भगवान के श्री चरणों से प्रेम बढ़ेगा दूसरा भगवान श्री राम की कृपा भी प्राप्त होगी क्योंकि भगवान श्री राम ने हनुमान जी को उदाहरण देते हुए एक प्रसंग मेँ कहा था कि वो (हनुमान जी ) उन्हे भरत के समान प्रिय हैं,अर्थात भरत जी श्री राम को अत्यंत प्रिय हैं ।

आज के प्रसंग को यहीं विराम देता हूँ,भगवान की और श्री भरत जी की कृपा रही तो फिर इस विषय पर और भी लेख लिखूंगा ।

  • सनातन धर्म की जय हो !
  • प्राणियों मेँ सद्भावना हो !
  • विश्व का कल्याण हो ! 

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