आज रामायण चौपाई में शंकर जी की बारात का रामायण प्रसंग ले रहा हूँ । जब मैं यह लेख लिखना प्रारम्भ कर रहा हूँ तब से दशहरा के थोड़े ही दिन बचे हैं और उस से भी कम दिन बचे हैं जगह जगह रामलीला मंचन की शुरुआत के,जिन लोगों को भी बचपन की रामलीला याद होगी उन्हे यह भी याद होगा कि रामलीला का प्रारम्भ शंकर जी की बारात से ही होता था । रामलीला के पहले दिन शंकर जी की बारात ही निकलती थी और शंकर जी की बारात का क्रेज सबसे ज्यादा बच्चों को ही होता था क्योंकि उसमें अलग अलग वेशभूषाओं में सजी हुई झांकिया निकला करती थीं ।
नमस्कार दोस्तो मैं पंडित योगेश वत्स आपका अपने धर्म,अध्यात्म और ज्योतिष के ब्लॉग पर सभी सनातनी हिन्दू भाई बहनों का स्वागत करता हूँ ।
इसके अलावा इस कथा को लेने का बहुत महत्वपूर्ण कारण भी है जो मैं कथा के अंत मे बताऊंगा । जो सनातन धर्म को मानते है जिनको भगवान राम से प्रेम है या किसी भी अन्य भगवान के भक्त हैं उन्हें जब भी कहीं भी अपनी ईष्ट की कथा और प्रसंग सुनने को मिलता है, वो पढ़ते सुनते हैं तो आप इस कथा में भी शामिल होईए और आनंद उठाईए ।
पूर्व में मैंने माँ पार्वती की घोर तपस्या पर लेख लिखा था जिन्होने नहीं पढ़ा है वो इस लेख के बाद जाकर वो लेख पढ़ सकते हैं लिंक दिया हुआ है । पार्वती की तपस्या से खुश होकर ईश्वर आकाशवाणी द्वारा माँ को बताते हैं उनकी तपस्या सफल हुई और तुम्हें वर के रूप में शिव जी मिलेंगे ।
माँ पार्वती को तो वरदान मिल गया लेकिन दूल्हे को तो अब तक पता भी नहीं होता, भोलेनाथ तो समाधि में होते हैं । तब विष्णु, ब्रह्मा सहित सभी देवता शंकर जी के धाम कैलाश जाते हैं और उनकी स्तुति करते हैं । भगवान शंकर खुश होते हैं और सभी देवताओं से उनके आने का कारण पूछते हैं । तब देवता कहते हैं …..
रामायण दोहा :
सकल सुरन्ह के हृदयँ अस संकर परम उछाहु।
निज नयनन्हि देखा चहहिं नाथ तुम्हार बिबाहु॥
रामायण दोहा अर्थ :
ये शंकर ! सभी देवताओं के मन में ऐसा परम उत्साह कि हे नाथ ! वे अपनी आँखों से आपका विवाह देखना चाहते हैं ।
सभी देवता शंकर जी से अनुनय विनय करते हैं और उन्हें शादी के लिए मनाते हैं और साथ में माँ पार्वती के बारे में अवगत भी कराते हैं ।
रामायण चौपाई अर्थ सहित :
पारबतीं तपु कीन्ह अपारा। करहु तासु अब अंगीकारा।।
रामायण चौपाई अर्थ :
( हे शकर जी ! ) पार्वती ने बहुत तप किया है अब उसे स्वीकार कीजिये ।
देवताओं की विनती पर अनुनय विनय और समझने पर शंकर जी विवाह के लिए सहमत हो जाते हैं । राजा हिमांचल को खबर भेज दी जाती है इधर शंकर जी की बारात की तैयारी शुरू होती है । शंकर जी के गण दूल्हे को सजाते हैं ।
शंकर जी का दुल्हा स्वरूप :
रामायण चौपाई अर्थ सहित :
सिवहि संभु गन करहिं सिंगारा। जटा मुकुट अहि मौरु सँवारा।।
कुंडल कंकन पहिरे ब्याला। तन बिभूति पट केहरि छाला।
शिव जी के गण शिव जी का श्रंगार करने लगे । जटाओं का मुकुट बनाकर साँपों का मौर सजाया गया । शिव जी ने साँपों के ही कुंडल और कंकन पहने, शरीर पर विभूति रमायी और वस्त्र की जगह वाघंबर लपेट लिया ।
ससि ललाट सुंदर सिर गंगा। नयन तीनि उपबीत भुजंगा।।
गरल कंठ उर नर सिर माला। असिव बेष सिवधाम कृपाला।।
शिव जी के सुंदर मस्तक पर चंद्रमा,सिर पर गंगा जी,तीन नेत्र, सापों का जनेऊ,गले में विष और छाती पर नरमुंडों की माला थी । इस प्रकार उनका वेश अशुभ होने पर भी वो कृपाल के धाम हैं ।
कर त्रिसूल अरु डमरु बिराजा। चले बसहँ चढ़ि बाजहिं बाजा।।
देखि सिवहि सुरत्रिय मुसुकाहीं। बर लायक दुलहिनि जग नाहीं।।
एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में डमरू सुशोभित है । शिव जी बैल पर चढ़ कर चले । बाजे बज रहे हैं । शिव जी को देखकर देव लोक की अप्सराएँ मुस्करा रही हैं [ और आपस में विनोद करती हैं ] इस वर के योग्य दुल्हन संसार में नहीं मिलेगी ।
![श्री राम विवाह चौपाई](https://sanaatanmandir.com/wp-content/uploads/2023/07/20240320_075849-300x30.jpg)
शंकर जी की बारात : रामायण चौपाई
नाना बाहन नाना बेषा। बिहसे सिव समाज निज देखा।
तरह तरह की सवारियों और तरह तरह के वेश वाले अपने समाज को देख कर शिव जी हँसे ।
कोउ मुखहीन बिपुल मुख काहू। बिनु पद कर कोउ बहु पद बाहू।।
बिपुल नयन कोउ नयन बिहीना। रिष्टपुष्ट कोउ अति तनखीना।।
कोई बिना मुख का है , किसी के बहुत से मुख हैं , कोई बिना हाथ पैर का है तो किसी के कई हाथ पैर हैं । किसी के बहुत आँखें हैं तो किसी के कोई आँख नहीं है । कोई बहुत मोटा ताजा है तो कोई बहुत ही दुबला पतला है ।
रामायण छंद अर्थ सहित :
तन खीन कोउ अति पीन पावन कोउ अपावन गति धरें।
भूषन कराल कपाल कर सब सद्य सोनित तन भरें।।
खर स्वान सुअर सृकाल मुख गन बेष अगनित को गनै।
बहु जिनस प्रेत पिसाच जोगि जमात बरनत नहिं बनै।।
कोई बहुत दुबला कोई बहुत मोटा ,कोई पवित्र कोई अपवित्र वेश धारण किए हुए है । भयंकर गहने पहने हाथों में कपाल लिए हुए हैं , और सब के सब शरीर पर ताजा खून लपेटे हुए हैं । गधे , कुत्ते ,सूअर और सियार के से उनके मुख हैं । गणों के अनिगिनित वेषों को कौन गिने ? बहुत प्रकार के प्रेत, पिशाच, योगिनियों की जमातें हैं । उनका वर्णन करते नहीं बनता ।
रामायण सोरठा :
नाचहिं गावहिं गीत परम तरंगी भूत सब।
देखत अति बिपरीत बोलहिं बचन बिचित्र बिधि।।
भूत-प्रेत सब गाते हैं नाचते हैं वो सब परम मौजी हैं । देखने में बड़े बेढंगे जान पड़ते हैं और विचित्र ढंग से बोलते हैं ।
शंकर जी की बारात की अगवानी :
आज भी गाँव में जब कोई बारात आती है तो गाँव के सभी बुजुर्ग बच्चे गाँव के बाहर बारात के स्वागत को जाते हैं और बारात का स्वागत परंपरागत तरीके से किया जाता है । बच्चों को दूल्हे को देखने का विशेष कौतूहल होता है इसलिए उनमें विशेष उत्साह रहता है ।
शंकर जी की बारात कैसी है उसका वर्णन आपने ऊपर पढ़ा । इस बारात की अगवानी करने जब महाराजा हिमाचल के दरबारी और आम जन पहुँचते हैं तो उन पर क्या असर होता है वो आगे देखिये …..
रामायण चौपाई अर्थ सहित :
सिव समाज जब देखन लागे। बिडरि चले बाहन सब भागे।।
धरि धीरजु तहँ रहे सयाने। बालक सब लै जीव पराने।।
[ बारात में पहले देवताओं के दल को देखा ] शंकर जी के दल को जब देखने लगे तब उनके वाहन [ हाथी,घोड़े, रथ के बैल इत्यादि ] डर कर भाग चले । कुछ बड़ी उम्र के समझदार लोग वहाँ डटे रहे । लड़के तो सब अपने प्राण लेकर भागे ।
घर पहुँच कर सब बच्चे काँपते हुए अपने माता पिता को बारात के बारे में सब बताते हैं । तब उनके माता पिता बच्चों को शंकर जी के बारे में बताते हुए समझाते हैं ।
रामायण दोहा :
समुझि महेस समाज सब जननि जनक मुसुकाहिं।
बाल बुझाए बिबिध बिधि निडर होहु डरु नाहिं।।
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Moral Of the Story : कथा का सार और प्रेरणा
इस कथा का सार यही है कि आप किसी भी समाज में रहते हों, भले आप आज बड़े पैसे वाले बन गए हों और आप के परिवार के लोग या समाज के लोग आप के बराबर ना हों वो आप जैसे कपड़े न पहनते हों उनका रूप रंग अच्छा न हो, उनके पास गाड़ी घोडा ना हो फिर भी जब भी आपके यहाँ शादी ब्याह हो कोई भी पारवारिक उत्सव हो तो सभी को आदर से बुलाना चाहिए ।
आपके यार दोस्त अपनी जगह हैं लेकिन परिवारी जन,अपना समाज अपने रिश्तेदार यह सब एक जन्म के रिश्ते नहीं होते कई जन्मों के होते हैं आज आप उनको अपमानित करोगे पता नहीं किस जन्म में आप को अपमानित होना पड़े ।
बहुत ही जरूरी बात :
शादी ब्याह के मामले में आजकल ये चलन हो गया है कि शादी की बाकी रश्मे बढ़ती जा रही हैं चाहे रिंग सेरेमनी हो, मेंहदी हो या अन्य और लेकिन हमारी परंपरागत रीति रिवाज पूजा छूटती जा रहीं हैं जिसके कारण आजकल शादिया ज्यादा टूट रही हैं । पहले घर की बुजुर्ग महिलाएं शादी के पहले और शादी के बाद परंपरागत पूजा विधान करती थीं जो आज लगभग बंद हो गए हैं जिसके कारण शादियाँ सफल नहीं हो रहीं है ।
शंकर जी की ही बारात में ही क्या भूत पिशाच जाते हैं ? नहीं, हमारे पूर्वज भी जो स्वाभाविक मौत नहीं मरे होते या फिर जिन्हें अभी तक दूसरा शरीर नहीं मिला होता वो सभी पारवारिक कार्यक्रम में इस बात का इंतिज़ार करते हैं कि आप उनका भी आहवाहन करें उनको भी याद करें उनको भी बारात ले जाएँ । परंपरागत पूजाएं और विधि विधान ऐसे ही नहीं हैं इसलिए शादी ब्याह में आपको कोई भी कार्यक्रम छोटा करना पड़े अपनी पारवारिक पूजाएं ना भूलें और अपने पूर्वजों को भी खुद मानसिक रूप से याद करते हुए हर कार्यक्रम में सम्मिलित करें ।
अपनी बात :
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सनातन धर्म की जय हो ! अधर्म का नाश हो
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