श्री राम स्तुति हिन्दी में : जय राम सदा सुखधाम हरे

श्री राम स्तुति हिन्दी में;
भगवान श्री राम

लंका विजय के पश्चात जो स्तुति ब्रह्मा जी ने की थी वही श्री राम स्तुति हिन्दी में यहाँ प्रस्तुत है ।

दो शब्द :

सामान्यतः श्री रामचन्द्र कृपाल भजमन ……. ये स्तुति ही राम स्तुति के रूप में की जाती है, लेकिन रामचरितमानस में बहुत सी स्तुतियाँ अनेक संत महात्माओं ने भगवान श्री राम की, की हैं अपने चौदह वर्ष के बनवास के दौरान भगवान श्री राम अनेक संतों के आश्रम में उन्हे दर्शन देने गये, संतों की लंबी तपस्या के बाद उन्हे अपने ईष्ट के दर्शन प्राप्त हुए, तब उन्होने अपने अपने प्रकार से भगवान की स्तुति की ये सभी स्तुतियाँ बहुत भावपूर्ण हैं आगे कभी और स्तुतियाँ यहाँ उपलब्ध कराऊंगा ।

आज जो श्री राम स्तुति यहाँ दे रहा हूँ वो स्वयं भगवान ब्रह्मा जी ने लंका विजय के बाद श्री राम के सम्मुख की थी । भगवान ब्रह्मा स्वयं इस शृष्टि के रचयिता हैं इसलिए उनके द्वारा की गयी स्तुति महत्वपूर्ण हो जाती है ।

श्री राम स्तुति हिन्दी में :

रामचरितमानस छंद :

जै राम सदा सुखधाम हरे । रघुनायक शायक चाप धरे।।

भव बारन दारन सिंह प्रभो । गुन सागर नागर नाथ विभो ।।

तन काम अनेक अनूप छवी। गुन गावत सिद्ध मुनींद्र कबी।।

जसु पावन रावन नाग महा । खग नाथ जत्था करि कोप गहा।।

जन रंजन भजन सोक भयं। गत क्रोध सदा प्रभु बोधमयम ।।

अवतार उदार अपार गुनम। महि भार विभंजन ज्ञान घनम ।।

अज व्यापकमेक मनादि सदा । करुणाकर राम नमामि मुदा।।

रघुबंस विभूषण दूषन हा। कृत भूप विभीषन दीन रहा ।।

गुन ज्ञान निधान अमान अजम। नित राम नमामि विभुम विरजम।।

भुजदंड प्रचंड प्रताप बलम। खल वृंद निकंद महा कुशलम।।

बिन कारन दिन दयाल हितम । छवि धाम नमामि रमा सहितम ।।

भव तारन कारन काज परम । मन संभव दारून दोष हरम।।

सर चाप मनोहर त्रोंन धरम। जलजारून लोचन भूप बरम।।

सुख मंदिर श्री रमनम । मदमार मुधा ममता समनम।।

अनवध्य अखंड न गोचर गो। सब रूप सदा सब होई न गो।।

इति वेद वदंती न दंत कथा । रवि आतप भिन्नम् भिन्न जथा।।

कृत कृत बिभों सब बानर हे। निरखंती तवानन सादर हे।।

धिग जीवन देव शरीर हरे । तव भक्ति बिना भव भूल परे ।।

अब दिन दयाल दया करिए । मति मोर विभेद करी हरिए ।।

जेहि ते विपरीत क्रिया करिये । दुख सो सुख मान सुखी चरिए।।

खल खंडन मंडन रम्य छमा। पद पंकज सेवत शंभू उमा।।

नृप नायक दे वरदान मिदम । चरणांबुज प्रेम सदा सुभदम।।

रामचरितमानस दोहा :

विनय कीन चतुरानन प्रेम पुलक अति गात।

शोभा सिंधु विलोकत लोचन नहीं अघात ।।

श्री राम विवाह चौपाई
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श्री राम स्तुति अर्थ :

हे नित्य सुखधाम और [ दुखों को हरने वाले ] हरि । हे धनुष बाण धारण किए हुए श्री रघुनाथ जी । आपकी जय हो । हे प्रभों ! आप भव ( जन्म मरण ) रूपी हाथी को विदीर्ण करने के लिए सिंह के समान हैं । हे नाथ । हे सर्वव्यापक, आप गुणों के समुद्र और अत्यंत चतुर हैं ।

आपके शरीर की अनेक कामदेवों के समान,परंतु अनुपम छवि है । सिद्ध मुनीश्वर और कवि आपके गुण गाते रहते हैं । आपका यश पवित्र है । आपने रावण रूपी महा सर्प को गरुण की तरह क्रोध करके पकड़ लिया ।

हे प्रभों ! आप सेवकों को आनंद देने वाले,शोक और भय का नाश करने वाले, सदा क्रोध रहित और नित्य ज्ञान स्वरूप हैं । आपका अवतार श्रेष्ठ, अपार दिव्य गुणो वाला, पृथ्वी का भार उतारने वाला और ज्ञान का समूह है ।

[ किन्तु अवतार लेने पर भी ] आप नित्य, अजन्मा,व्यापक,एक ( अदिद्वितीय ) और अनादि हैं । हे करुणा की खान श्री राम जी मैं आपको बड़े हर्ष के साथ नमस्कार करता हूँ । हे रघुकुल के आभूषण, हे दूषण राक्षस को मारने वाले तथा समस्त दोषों को हरने वाले, विभीषण दीन था, उसे आपने ( लंका का ) राजा बना दिया ।

हे गुण और ज्ञान के भंडार, हे मान रहित, हे ! अजन्मा, व्यापक और मायिक विकारों से रहित श्री राम । मैं आपको नित्य नमस्कार करता हूँ । आपके भुजदंडों का प्रताप और बल प्रचंड है । दुष्ट समूहों के नाश करने में आप परम निपुण हैं ।

हे बिना ही कारण दीनों पर दया और उनका हित करने वाले और शोभा के धाम, मैं श्री जानकी सहित आपको नमस्कार करता हूँ । आप भवसागर से तारनेवाले हैं । कारणरूपा प्रक्रति और कार्यरूप जगत दोनों से परे हैं और मन से उत्पन्न होने वाले कठिन दोषों को हरने वाले हैं ।

आप मनोहर बान,धनुष और तरकस धारण करने वाले हैं । { लाल} कमल के समान रक्तवर्ण आपके नेत्र हैं, आप राजाओं मे श्रेष्ठ, सुख के मंदिर,सुंदर, श्री ( लक्ष्मी ) जी के वल्लभ तथा मद ( अहंकार) काम और झूठी ममता के नाश करने वाले हैं ।

आप दोष रहित हैं, अखंड हैं, इंद्रियों के विषय नहीं हैं । सदा सर्वरूप होते हुए भी आप वह सब कभी हुए ही नहीं ऐसा वेद कहते हैं । यह कोई दंतकथा या कोरी कल्पना नहीं है । जैसे सूर्य और सूर्य का प्रकाश अलग अलग है और अलग नहीं भी है वैसे ही आप संसार से भिन्न और अभिन्न दोनों ही हैं ।

हे व्यापक प्रभों ! ये सब बानर कृतार्थरूप हैं, जो आदरपूर्वक आपका मुख देख रहे हैं और हे हरे ! हमारे अमर जीवन और दिव्य शरीर को धिक्कार है जो हम आपकी भक्ति से रहित हुए सांसारिक विषयों में भूले पड़े हैं ।

हे दीनदयाल अब दया कीजिये और मेरी उस विभेद करने वाली बुद्धि को हर लीजिये जिस से मैं विपरीत कर्म करता हूँ और जो दुख है उसे सुख मानकर आनंद से विचरता हूँ ।

आप दुष्टों का खंडन करने वाले और पृथ्वी के रमणीय आभूषण हैं । आपके चरण कमल श्री शिव पार्वती द्वारा सेवित हैं । हे राजाओं के महाराज मुझे यह वरदान दीजिये कि आपके चरण कमलों में सदा मेरा कल्याण दायक अनन्य प्रेम हो ।

इस प्रकार ब्रह्मा जी ने अत्यंत प्रेम पुलकित शरीर से विनती की । शोभा के समुद्र श्री राम जी के दर्शन करते करते उनके नेत्र त्रप्त ही नहीं होते थे ।

अपनी बात :

सभी सनातनी हिन्दू, भाई बहनों को अपने ईष्ट के प्रार्थना में कोई भी एक स्तुति जरूर करनी चाहिए । रामायण में दी गयी स्तुतियाँ अलग अलग भाव की और अलग अलग समय पर की गयी हैं, आपको जो भी भाव पसंद आए उस भाव की स्तुति दिल से भगवान के सामने प्रसन्न चित्त से की जानी चाहिए ।

जब कोई भी आपका बहुप्रतीक्षित कार्य पूर्ण हो जाये तो ऊपर दी गई स्तुति प्रसन्न चित्त से भगवान के सम्मुख धन्यवाद स्वरूप सभी भक्तों को जरूर करनी चाहिए

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