श्री राम विवाह : आज श्री बालकांड की रामायण चौपाई में (बाल कांड दोहा संख्या 328 ) श्री राम कलेवा की चौपाई पर विस्तार से बात करूंगा । इसमें उस लोक परंपरा की झलक भी आपको दिखाई पड़ेगी जो अवध क्षेत्र और अयोध्या धाम में ही नहीं पूरे मध्य उत्तर भारत के ग्रामीण क्षेत्र में आज भी विराजमान है ।
नमस्कार,राम राम !!!
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आइये पहले कलेवा को जानते हैं, कलेवा क्या होता है या कलेवा किसको कहा जाता है ।
कलेवा क्या होता है ?
मध्य उत्तर भारत और अवध क्षेत्र में कभी कलेवा शब्द का प्रयोग आम बोलचाल की भाषा में किया जाता था आज भी कहीं कहीं जरूर प्रयोग किया जाता होगा, कलेवा का अर्थ होता है भोजन,कलेवा Break Fast,Lunch,Dinner किसी के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है । जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में शब्दों को बोलचाल की भाषा में थोड़ा तोड़ मरोड़ भी दिया जाता है,कहीं कहीं कलेवा को कलेऊ भी बोला जाता था ।
मुझे आज भी याद है बचपन में जब गाँव में रात के भोजन के समय घर का कोई सदस्य घर के भोजन के समय उपस्थित नहीं होता था तो बच्चों को उन्हे बुलाने के लिए बोला जाता था तब बच्चे बाहर जा कर आवाज लगाते थे, वो रिश्ते का सम्बोधन करते हुए किसी ऊंचे स्थान पर खड़े हो कर आवाज लगाते थे जैसे …..चाचा केलेऊ कर लेउ आ के ….
ऐसे ही जब जब किसान मुंह अधेरे ही बिना कुछ खाये पिये खेत पर काम पर चले जाते थे, उन्हे बाद में कुछ खाने को भेजना होता था, उनको खेत पर नाश्ते के लिए जो कुछ भेजा जाता था उसे भी कलेऊ ही बोला जाता था । उस समय ज़्यादातर बच्चों को ही बोला जाता था कि जाओ खेत पर कलेउ दे आओ ।
कुँवर कलेवा क्या होता है ?
कलेवा को समझने के बाद कुँवर कलेवा को समझना आसान हैं । जैसा कि ऊपर बताया कलेवा का मतलब होता है भोजन, और कुँवर का प्रयोग सामान्यतः दूल्हे के लिए किया जाता है, तो कुँवर कलेवा का अर्थ हुआ दूल्हे का भोजन ।
किसी भी पारंपरिक शादी विवाह में कुँवर कलेवा एक महत्वपूर्ण और बहुत खूबसूरत रीति या परंपरा हुआ करती थी, अब भी इसे कहीं कहीं बहुत छोटे रूप में शादी विवाह में देखा जाता है ।
पहले शादियों में बारात कई कई दिन तक कन्या पक्ष के यहाँ रुका करती थी तब ये सभी रीतियाँ और परम्पराएँ, विधि विधान और हर्षोल्लास से मनाई जातीं थीं । बारात आने के दूसरे दिन सबसे अच्छा खाना कन्या पक्ष की ओर से बनवाया जाता था और शाम के समय का भोजन जब परोसा जाता था तो बाकी बारात तब तक खाना नहीं प्रारम्भ करती थी जब तक कुँवर मतलब दुल्हा खाना प्रारम्भ नहीं करता था ।
बारात के खाने की व्यवस्था बाहर और दूल्हे और उसके साथ छोटे बच्चों की खाने की व्यवस्था घर के अंदर हुआ करती थी ।
उसी समय दुल्हा रूठा करता था और दुल्हन की सहेलियाँ,नाते रिश्ते दार महिलाएं उसे तरह तरह से मना मना के खिलाने का प्रयास करती थीं और कभी कभी कभी यह रूठना मनाना लंबा चलता था,पूरी बारात तब तक सामने परोसा हुआ खाना खा नहीं सकती थी,दूल्हे को मनाने की प्रक्रिया चालू रहती थी और बारात इस इंतिज़ार में रहती थी कब दुल्हा खाये तो वह भी अपने व्यंजनों का आनंद लें ।
आज के लेख के प्रसंग में यह सब बताना इसलिए आवश्यक था क्योंकि इसके बिना आप श्री राम विवाह के समय तुलसी दास द्वारा लिखी गई राम कलेवा की चौपाई का रस नहीं ले पाते,आप में से अधिकांश पाठकों ने इन परम्पराओं के बारे में कम ही सुना होगा ।
आइये अब हम श्री राम विवाह प्रसंग की ओर बढ़ते हैं और राम कलेवा चौपाई का रस लेते हैं ।
श्री राम विवाह : राम कलेवा की चौपाई :
श्री राम विवाह बालकांड रामायण दोहा 328 :

सूपोदन सुरभी सरपि सुंदर स्वादु पुनीत।
छन महुँ सब कें परुसि गे चतुर सुआर बिनीत।।
हिन्दी भावार्थ :
चतुर और विनीत रसोइये स्वादिष्ट और पवित्र दाल चावल और गाय का सुगंधित घी क्षण भर में सबके सामने परोस गए ।
श्री राम विवाह बालकांड राम कलेवा की चौपाई :

पंच कवल करि जेवन लागे । गारि गान सुनि अति अनुरागे।।
भाँति अनेक परे पकवाने। सुधा सरिस नहिं जाहिं बखाने।। (1)
हिन्दी भावार्थ :
सभी लोग पाँच मंत्रों का उच्चारण करने के बाद भोजन करने लगे,गालियां सुनकर तो सब अत्यंत प्रेम मग्न हो गए । इतने प्रकार के अमृत के समान पकवान परोसे गए जिनका वर्णन नहीं हो सकता ।
परुसन लगे सुआर सुजाना। बिंजन बिबिध नाम को जाना।।
चारि भाँति भोजन बिधि गाई। एक एक बिधि बरनि न जाई।। (2)
हिन्दी भावार्थ :
चतुर रसोइये अनेक प्रकार के व्यंजन परोसने लगे,उनका नाम कौन जाने ? चार प्रकार से भोजन की विधि कही गई है ( चबाकर,चूस कर,चाट कर और पी कर ) उनमें से एक एक बिधि के अनेक भोज्य पदार्थ बने हुए थे जिनका वर्णन नहीं किया जा सकता ।
छरस रुचिर बिंजन बहु जाती। एक एक रस अगनित भाँती।।
जेवँत देहिं मधुर धुनि गारी। लै लै नाम पुरुष अरु नारी।। (3)
हिन्दी भावार्थ :
छहों रसों के अनेक प्रकार के सुंदर स्वादिष्ट व्यंजन थे,एक एक प्रकार के अनेक प्रकार के (भोज्य पदार्थ )बने थे । भोजन करते समय पुरुष और स्त्रियों के नाम ले लेकर,स्त्रियाँ मधुर स्वर में गालियां दे रहीं थीं ।
समय सुहावनि गारि बिराजा। हँसत राउ सुनि सहित समाजा।।
एहि बिधि सबहीं भौजनु कीन्हा। आदर सहित आचमनु दीन्हा।। (4)
हिन्दी भावार्थ :
उस समय सुहावनी गालियां भली लग रही थीं, जिन्हें सुनकर समाज के साथ साथ राजा दसरथ भी हंस रहे थे । इस रीति से सबने भोजन किया उसके बाद उन्हें आचमन के लिए जल दिया गया ।
श्री राम विवाह, बालकांड रामायण दोहा 329 :
देइ पान पूजे जनक दसरथु सहित समाज।
जनवासेहि गवने मुदित सकल भूप सिरताज।।
हिन्दी भावार्थ :
फिर पान देकर जनक जी ने समाज के सहित दसरथ जी का पूजन किया उसके बाद प्रसन्न हो कर दसरथ जी जनवासे को गये ।
श्री राम विवाह : राम कलेवा की चौपाई, निष्कर्ष और सार :
कोई भी रामचरित मानस चौपाई उठा कर देख लीजिये वो हमें जीवन जीने का रास्ता दिखाती है । तुलसी दास जी ने रामचरितमानस में केवल भगवान श्री राम के आदर्श चरित्र का वर्णन ही नहीं किया है बल्कि सनातन संस्कृति के उच्च और आदर्श परम्पराओं का भी वर्णन किया है ।
आज से सैकड़ों साल पहले शादी विवाह की परम्पराएँ कैसी थी,भगवान श्री राम विवाह के समय त्रेता युग में शादियों में कैसा उत्साह,उमंग और एक दूसरे को सम्मान देने की प्रथाएँ थीं यह सब इन प्रसंगो में देखने को मिलता है ।
आज से चालीस साल पहले तक ये परम्पराएँ, चाहे कुँवर कलेवा की परंपरा हो या बारात के समय स्त्रियों के द्वारा मधुर स्वर में नाम ले ले कर गालियां गाने की परम्पराएँ हों,,सभी बहुतायत में मौजूद थीं लेकिन अब तो शादियाँ भी कुछ घंटों की होती हैं इसीलिए शादियों के समारोह का समय भी घटा है और शादियों के लंबे जीवन का सफर भी घटा है ।
चलते चलते पुनः निवेदन :
जो भी सनातनी भाई बहन लेख के अंतिम पड़ाव तक आए हैं,उनका लेख पढ़ने के लिए बहुत बहुत आभार ।
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सनातन धर्म की जय हो ….. अधर्म का नाश हो …… विश्व का कल्याण हो ….
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